अब तो इच्छाए प्रबल हो रही है।
चाहते अपने अधिकारों को पाने की ।
छल और कपट को दूर कर ।
सब कुछ पा लेने की।
अभी तो यह शुरूवात है ।
चेन से अब नहीं बैठने वाले नही हम।
छीन लेंगे सारे अधिकार।
अच्छा करने की चाहत प्रबल हो गयी है।
✅ Do you like the poem “अच्छा” by Ajay Srivastava on Poemfull.com? If so, don't forget to share this post with your friends and family ♡ !