हाँ, निशान्त आया,
तूने जब टेर प्रिये, कान्त, कान्त, उठो, गाया–
चौँक शकुन-कुम्भ लिये हाँ, निशान्त गाया ।
आहा! यह अभिव्यक्ति,
द्रवित सार-धार-शक्ति ।
तृण तृण की मसृण भक्ति
भाव खींच लाया ।
तूने जब टेर प्रिये, ‘कान्त, उठो’ गाया !
मगध वा सूत गये,
किन्तु स्वर्ग-दूत नये,
तेरे स्वर पूत अये,
मैंने भर पाया ।
तूने जब टेर प्रिये, ‘कान्त, उठो’ गाया ।
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